जस्टिस कर्णन (मुलनिवासी) ने किया भ्रष्‍टाचारी सुप्रीम कोर्ट के ब्राह्माणवादी जजों के पर्दाफास - 100 करोर मुलनिवासी आगे बडो

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ब्राह्माणवादी जार्ज ने दलित जस्टीस को अरेस्ट करने के वारंट दिया .. हमें Evm की तरह सुप्रीमकोर्ट व हाइकोर्टों को ब्राह्माणवादी जजों को भी भारत से भगाना ही होगा!ब्राह्माणवादी मुक्त भारत=विश्वगुरू भारत!
अगर आरोप सही तो अवमानना कैसे हो सकता है? बिना जाँच आरोप सही या गलत फैसला कैसे हो सकता है?
जस्टिस कर्णन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर ‘न्‍यायपालिका में भारी भ्रष्‍टाचार’ के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था। 23 जनवरी को लिखे गए पत्र में जज कर्णन ने ‘भ्रष्‍टाचारी जजों की शुरुआती सूची’ भी बनाई और सुप्रीम कोर्ट और उच्‍च न्‍यायालयों के 20 जजों के नाम उसमें शामिल किए।


शीर्ष अदालत और हाई कोर्ट के कई वर्तमान और रिटायर्ड जजों पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाये जिस सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी जाँच के स्‍वत: संज्ञान लेने हुए अवमानना की कार्रवाई शुरू की है। इस के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया समेत सुप्रीम कोर्ट के सात वरिष्‍ठतम जज, कलकत्‍ता हाई कोर्ट जज सीएस कर्णन के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करना सुरु कर दिया।
जस्टिस कर्णन ने जो संगीन और गम्भीर आरोप न्यायपालिका पर लगाये है निश्चित रूप से विचारनीय है। यह आरोप और भी गम्भीर हो जाता है जब यह भारतीय न्यायपालिका के एक प्रमुख अंग ने ही इसके शीर्ष को जातिवादी बता दिया है। हाई कोर्ट के इस जज ने पूरी जिम्मेदारी से कई सारे वरिष्ठतम जजों पर आरोप लगाए हैं, तो यह पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए कि आरोप सही हैं या गलत।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के कई पत्रों और बयानों का संज्ञान लिया है और उसी आधार पर कार्रवाई बिना की ठोस जाँच के अवमानना का कार्यवायी शुरू कर दिया है जो विधि संगत नहीं है।
हाई कोर्ट के किसी जज को सिर्फ संसद में महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है। ऐसी कोई भी शक्ति शीर्ष अदालत को नहीं है। इसलिए, शीर्ष अदालत के पास जो विकल्‍प मौजूद हैं, उनमें उनकी शक्तियों पर नियंत्रण संबंधी आदेश जारी कर स्‍वत: संज्ञान लेकर अवमानना कार्रवाई शुरू कर दिया है। जस्टिस कर्णन की न्‍यायिक शक्तियां वापस लेने और उन्‍हें कोई काम न देने का न्‍यायिक आदेश जारी करना भी शामिल है।
अगर जस्टिस कर्णन के लगाये गये आरोप सच्चे हों, तो क्या आरोप लगाने वाले के खिलाफ अवमानना का मामला अपने आप खारिज नहीं हो जाना चाहिए? परंतु इसके लिए जरुरी है कि लगाये गये आरोपों की जाँच हो। परंतु शीर्ष अदालत इन आरोपों की जाँच से क्यों बच रहा है। अच्छा होगा कि इस मुकदमे की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों की कसौटी सिर्फ और सिर्फ सत्य अर्थात जाँच के उपरान्त आये रिपोर्ट को ही बनाए। दोनों में से किसी भी पक्ष की तरफ से अगर तथ्यों को छुपाने की या मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश होती है तो न्यायपालिका की साख पर इसका सीधा बुरा असर पड़ेगा। दूसरी तरफ, अगर यह मामला दलित पहचान का अनुचित लाभ उठाने का है तो भी इस कारवाई होनी चाहिए।
परंतु सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी जाँच के स्वत: सज्ञान लेते हुए जस्टिस कर्णन के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही सुरु कर दिया है तथा इनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। इस जमानती वारंट को देने के लिए कर्णन के घर लगभग 100 पुलिस वाले पहुंचे थे। उनके साथ कोलकाता पुलिस आयुक्त भी मौजूद थे। लेकिन कर्णन ने वारंट लेने से इंकार किया दिया है।यहाँ सवाल यह भी है कर्णन के घर पुलिस आयुक्त के साथ 100 पुलिस वाले क्यों गये! क्या जस्टिस कर्णन कोई अपराधी है??
वही सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किए थे और 10 हजार का पर्सनल बॉन्ड भी भरने के आदेश दिए थे। पश्चिम बंगाल के डीजीपी को वारंट की तामील कराने को कहा गया था। 31 मार्च से पहले जस्टिस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए गए थे। जस्टिस कर्णन अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद न तो पेश हो रहे है और नहीं अभी कोई जबाब दिए है। -संतोष यादव, अधिवक्ता, सर्वोच्य न्यायालय भारत & नेशनल प्रसिडेंट पी आई एल फाउंडेशन, दिल्ली 

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